Ram Rekha Baba
श्री रामरेखा बाबा
!!श्री रामानुजाय नम:!!
श्री हिन्दू धर्म रक्षा समिति के संस्थापक परमपूज्य गुरूदेव आचार्य श्री जयराम प्रपन्न जी महाराज, श्री रामरेखा बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। अपने त्याग, तप एवं सेवा से सम्पूर्ण क्षेत्र में विख्यात है। आपके निरन्तर सद्प्रयास से क्षेत्र में सामाजिक चेतना, धार्मिक जागरण, आध्यात्मिक उन्नयन का काय्र विशेष लेकप्रिय हुए हैं।
जन्म एवं परिचय
आप का जन्म एक ब्राहय़मण गृहस्थ परिवार में श्रावण शुक्ल चतुर्दशी विक्रम सम्वत 1953 तदनुसार 28 अगस्त 1896 को चौथी संतान के रूप में ग्राम – कुलुन्डी, थाना – गौडपाली, जिला – सम्बलपुर, उड़ीसा में हुआ। आरम्भिक शिक्षा गौड़पाली प्राथमिक विद्यालय से प्राप्त करने के बाद देवगढ़ से माध्यमिक परीक्षा पास किए।
स्वाधीनता संग्राम आन्दोलन में किशोरावस्था में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रूप में सक्रिय रहे। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज में सक्रिय रूप से सम्मिलित होकर स्वाधीनता संग्राम में डटे रहे।
वैराग्य जीवन
सन् 1928 ई0 में माध्यमिक परीक्षा पास कर एक वाममार्गी साधु के साथ घर छोड़कर निकल पड़े। उड़ीसा, बिहार, बंगाल के विभिन्न क्षेत्रों में घुमते हुए द्वारिकाधीश मंदिर, काशी में सन् 1935 ई0 में पहुँचे । यहीं स्वामी जनार्दन आचार्य जी से सम्पर्क हुआ और उनसे दीक्षा ग्रहण किये।
स्वामी जनार्दन आचार्य जी रामानुज सम्प्रदाय के पांचवें गुरू हुए हैं। इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरू स्वामी श्री निवास आचार्य हुए हैं। इनके पश्चात् द्वितीय गुरू स्वामी नृसिंह आचार्य, तृतीय गुरू स्वामी श्री कृष्ण आचार्य, चतुर्थ गुरू स्वामी श्री रामगोपाल आचाय्र एवं पांचवे गुरू स्वामी जनार्दन आचार्य। इनके प्रमुख शिष्यों में स्वामी ओहबल प्रपन्नाचार्य और स्वामी जयराम प्रपन्नाचार्य हुए। स्वामी जनार्दन आचार्य के शरीर त्याग के पश्चात् छठे गुरू ओहबल प्रपन्नाचार्य जी हुए। वे देवराहा बाबा के नाम से विश्व विख्यात है। देवराहा बाबा के ब्रम्हलीन होने के पश्चात् उनके गुरू भाई स्वामी जसराम प्रपन्न जी महाराज सातवें गुरू हुए। जो रामरेखा बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए।
काशी से श्री रामरेखा धाम
स्वामी जनार्दन आचार्य जी के सानिध्य में ज्येष्ठ 1941 तक काशी में रहकर स्वामी जयराम प्रपन्न जी ने आत्मिक विकास किया। वैशाख 1942 में बीरू गढ़ के राज धर्मजीत सिंह के निमंत्रण पर गुरू जी महाराज का आगमन बीरू में हुआ। राजा साहब के विनम्र आग्रह एवं गुरू महाराज के आदेश से श्री राम रेखा धाम पहुँचे। उस समय धाम में श्री हरिहर दास जी पुजारी का काय्र कर रहे थे। अब स्वामी जसराम प्रपन्न जी महाराज विधिवत् रामरेखा धाम के महन्त हुए।
इस समय श्री रामरेखा धाम में भगवान श्री राम, लक्ष्मण और जानकी के साथ राधा कृष्ण की पूजा अर्चना होती थी। पुजारी स्वंय फुलझईर में रहते थे। भग नियोग के लिए मसेकेरा, पालेडीह में जमीन की व्यवस्था थी। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर रासलीला का कार्यक्रम स्थानीय माहकुर जाति के लोगों द्वारा किया जाता था। बनवासियों का गीत नृत्य एवं रीझ रंग धीरे-धीरे मेला के रूप में विकसित होने लगा था। माघ पूर्णिमा के समय आस-पास के भद्र लोग आकर पूजा अच्रना करते थे।
महन्त स्वामी जयराम प्रपन्न जी जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्राजी की स्थापना कर रथयात्रा आषाढ़ द्वितिया को चलाने का कार्य प्रारम्भ किया। महन्त जी का श्रान, भक्ति, सेवा पूजा अर्चना, स्थान की सुरक्षा सुव्यवस्थने स्थानीय लोगों को अत्यधिक प्रभावित किया । दुर दराज के श्रद्धालु भक्तों को भी अत्याधिक आकर्षित किया । अनन्य भक्ति एवं साधना से प्रभावित होकर महन्त जी को 1952 में गुप्त रूप से रह रहे पांच अमर संतों का दर्शन हुआ। घटना के सम्बन्ध में पूज्य बाबा बतलाते हैं ब्रम्हमुहूर्त में नित्य गंगा में स्नान करते समय ऐसा लगता था कि अभि-अभी कोई स्नान करके चला गया है। इस निर्जन स्थान में मेरे स्नान के पूर्व आकर किसी का स्नान करना आश्चर्य लगता था। कौतुहलवश जानने की इच्छा हुई कि आखिर कौन पहले स्नान करने आते हैं, जानना चाहिए । अंतत: एक दिन पता चला कि अश्रात रूप से रहरहे संत गंगा में स्नान करते हैं। उनके दर्शन का आर्शीबाद देकर चले जाने की बात कहते थे।
पूज्य स्वामी जी का उपदेश
ईश्वर एक है- सनातन है- चिरन्तर है। इस संसार और यहॉं के जीव मात्र के स्रष्टा है। सबका पालन पोषण करने वाले हैं। वे सबका कल्याण करने वाले हैं। सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करते हैं।
हम सभी मनुष्यों को एक दूसरे की सेवा करना है, सम्पूर्ण जीवों को प्यार करना है। सभी जीवों पर दवा, सबका हित करने मात्र का अधिकार हमें है। दूसरों का हित ही धर्म है और अहित अधर्म है। यही एक सनातन सत्य है। मानव धर्म है।
अन्य सभी मानव निर्मित रास्ते हैं, पंथ हैं, उन मार्गो से भी ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है। मनुष्य अपने हित के लिए काल समय के अनुसार ऐसे धर्म, पंथ, जाति, सम्प्रदाय का निर्माण किया है।
अत: हम मानव मात्र का कर्तव्य है कि धर्म, जाति, मत, पंथ और सम्प्रदाय के विभेदों से ऊपर उठकर एक दूसरे को सदेव कल्याण करें, सेवा करें। परोपकार मनुष्य का सनातन धर्म है । ईश्वर प्राप्ति का सही एक मात्र साधन है। मनुष्य को अपने धर्म का पालन करना श्रेयकर है एवं अन्य धर्मो में जाना भयावह है। सबका कल्याण हो, सबका जय हो।
पूज्य बाबा का स्पष्ट मत है, किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म सम्प्रदाय अथवा मतवाद की निन्दा करने का अधिकार नहीं है, किन्तु सभी धर्मों में जो समान बातें हैं उनको विशेष रूप से अपनावें जिससे सम्पर्ण मानव जाति में पारिवारिक भावना का विकास हो, सबकी भलाई हो। पूज्य बाबा कहते हैं कलियुग में सब धर्मो का सार राम का नाम है। सबके कल्याण् का साधन राम का नाम है। इसलिए राम के नाम का हर समय स्मरण करते रहना चाहिए।
प्राचीन धर्म ग्रंथ यथा वेद पुराण के सम्बन्ध में बाबा कहते हैं – ये सभी सम्पूण्र मानव जाति की सम्पत्ति है। ये सभी सम्पूर्ण मानव जाति की कल्याण की बातें करते हैं। इनका गहन अध्यन कर इनके बताये मार्ग पर मनुष्य को चलना चाहिए। इसी में मनुष्य का कल्याण है।
गुरु तत्व
यस्य देवे परा भक्ति: यथादेवे तथा गुरौ।
तस्यैते कथिता ह्ययार्था: प्रकाशान्ते महात्मन: ।।
गुरु न मर्त्यं बुध्येत, यदि बुध्येत तस्यतु।
कदापि न भवेत् सिद्धिर्त मन्त्र देव पूजनै:।।
आचार्य मां विजानीयात् नाव मन्येत कर्हिचित्।
न मर्त्य बुद्धया सूर्येत् सर्व देवमयो गुरु ।।
श्रोतियो अ वृजिनो अ काम हतो यो ब्रह्म वित्तम:
ग्रह्याण्यु परत: शानतो निरिन्धन इवानत:।।
अहैतुक दयार्सिन्धुर्वत्धुरानमर्तो सताम।।
दर्शनात् स्पर्शनात् शब्दात् शिष्यदेहके।
जनयेंद य: समावेशां शाम्भवं सहिदेशक:।।
श्री रामरेखा बाबा स्तोत्रम्
वन्दे सद्गुरू शान्त प्रत्यक्षं रामरूपिणम्।
श्री रामरेखा धाम भक्ति कामार्थ सिद्धये।।
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम।
तत्पदंदर्शित येन तस्मै श्री गुरुवे नम:।।
अश्रानतिमिरान्यस्य श्रानांजनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येनतस्मै श्री गुरुवै नम:।।
प्रशान्तं निरहभावं निर्माण मुक्तमत्तरम्।
श्री रामरेखा बाबा, रामरूपं नमाम्यहम्।।
स्थावरं जंगम् व्याप्तं यत्किचितं चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मैं श्री गुरुवै नम:।।
गुरुर्ब्रम्हां गुरुविष्णु: गुरुदेवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रम्ह तस्मै श्री गुरवै नम:।।
भजन कीर्त्तन के संबंध में पूज्य महाराज जी कहते हैं कि राम का ाम वाणी से उच्चारण करने करने से, ध्वनि का कानों में पड़ने से तथा मन में चिन्तन करने से मनुष्य का जीवन अंदर से और बाहर से शुद्ध होता है। इसलिए समय निकालकर भजन कीर्त्तन में भाग लेना चाहिए। समय – समय पर सबके कल्याण के लिए भजन कीर्तन का आयोजन करना चाहिए ।
ईश्वर और जीच के संबंध में पूज्य बाबा कहते हैं – ईश्वर सिन्धु है जीव उसका एक बिन्दु है। बिन्दु को सिन्धु में सम्मिलित करना ही जीवन का उद्देश्य है।
छुआछूत, जाति-पाति की कल्पना के संबंध में पूज्य में बाबा कहते हैं कि समय स्थान के अनुसार यह जनहित में बनी थी। इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं जैसे मनुष्य शौच आदि क्रिया के समय अपवित्र हो जाता है। क्रिया के बाद स्नान का विधान जनहित में है। रजस्वला काल में स्पर्श नहीं करना जनहित में है। उसी तरह शौचालय, नाली साफ करने के काल में मनुश्य का अशुद्ध माना जाना जनहित में है लेकिन इससे जातिगत पेशागत बनाकर हमेशा ऐसे कार्यों में लगे लोगों के सथ व्यवहार करना उचित नहीं है। बाबा कहते हैं पाप से घृणा करना चाहिए – पापी से नहीं क्योंकि पापी को पाप मुक्त हो जा सकता है। कोई काय्र घृणास्पद हो सकता है कार्य करने वाला घृणित नहीं । इसलिए ऐसा कुरीतियों का परिहार कर युग के अनुसार उसकी उपयोगिता की स्थापना होनी चाहिए।हरिजनों के संबंध में बाबा का मत है कि हम-आप के जैसे हरि के जन हैं। वे भी हमारे समान भगवान को प्रिय हैं। भगवान के पास पहुंचने के कलए ही हरि कीर्तन, पूजन आदि का रास्ता बना है।
देश की वर्तमान स्थिति के संबंध में पूज्य बाबा का कहना है कि इस देश को तो भगवान ही चला रहे हैं। सरकार से देश नहीं चल रही है। आजादी के बाद धर्म संस्कृति की विशेष हानि हुई है। संत महात्माओं का निरादर हो रहा है। गौ माता का खून बहाया जा रहा है। इसी से देश में अराजकता है, अनाचार-दुराचार बढ़ा है। को ई भी देश धर्म को अलग रख कर चल नहीं सकता है। इस देश की सरकार विधर्मियों की सरकार है, सरकार को धर्म से को ई मतलब नहीं है। समझो इस देश में सत्य, अहिंसा अपरिग्रह की कल्पना कैसे की जा सकती है। आज हिंसा का राज्य है। सत्यवादियों को हर जगह अपमानित होना पड़ रहा है। ऐसाी स्थिति में समाज और देश का कल्याण वर्तमान सरकार और व्यवस्था में हो ही नहीं सकता है।
गौ माता की रक्षा के संबंध में बाबा कहते है – यह धार्मिक दृष्टि से तो आवश्यक है ही, भारत की गरीबी को दूर करने के लिए भी गौ रक्षा और गौ संवर्द्धन आवश्यक है। दूध और घी से देश के बच्चे, नागरिक स्वस्थ होंगे। स्वस्थ मस्तिष्क, स्वस्थ विचारों को जन्म देगा। समाज में नैथ्तकता आयेगी। देश के लिए काम करने वाल ेअधिक श्रम कर सकेंगे आयु में वृद्धि होगी, गाय के गोबर से खाद बनेगी, पैदावार बढ़ेगी। कम समय में देश में हिन्दु, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई सभी लोगों को गौ पालन और रक्षण संबर्द्धन में सम्मिलित हो जाना चाहिए।
हीरा वहां न खोलिये, जहां खोट की हाट।
कस करि बांधी गाठरी, अपनी देखौ बाट।।
पूज्य बाबा और विश्व हिन्दू परिषद
पूज्य बाबा कहते हैं – संघे शक्ति कलियुगे। देश के विकास एवं देश की रक्षा के लिए अपने देश के लोगों का संगठन आवश्यक है। विश्व हिन्दु परिषद देश भक्तो का एक संगठन है। यह भारतीय संस्कृति हिन्दू धर्म के प्रचार – प्रसार का कसर्य कर रही है। आज राजनेता अपने स्वार्थ के लिए वोट के लिए देश को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा के आधार पर बांट रहे हैं वहीं विश्व हिन्दू परिषद संस्कृति के नाम पर देश को जोड़ने का काम कर रहा है। देश जुड़ेगा तो समृद्धशाली होगा। देश टूटेगा तो कमजोर होगा। इसलिए देश के सभी लोगों को विश्व हिन्दू परिषद के क्रिया कलापों में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए। देश के नवनिर्माण में साथ देना चाहिए। इसी उद्देश्य के लिए सभी संत महात्माओं का आशीर्वाद विश्व हिन्दू परिषद को है।
श्री रामरेखा धाम अयोध्या, काशी, मथुरा, रामेश्वरम जैसा एक तीर्थ है। पूज्य बाबा का यह कर्म स्थल है, साधना स्थल है। बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं अन्य क्षेत्र के लोग दर्शन पूजन के लिए आते रहते हैं। बाबा एक सच्चे साधक संत हैं। संत अपने में तीर्थ होते हैं। संतों का दर्शन पूजन करने से तीर्थ करने का फल प्राप्त होता है। बाबा की कृपा दृष्टि हमेशा अपने भक्तों के साथ रहती है। सभी भक्तों का कल्याण उनके दर्शन मात्र से होता रहता है। उनका पावन चरित्र लिखना, बोलना वास्तव में अत्यन्त कठिन काय्र है। उनको भक्त वास्तव में उनका दर्शन आशीर्वाद से ही अनुभव करते है, जानते हैं। धर्म ग्रंथों में गुरु को ईश्वर से बढ़कर कहा गया है, परन्तु वास्तव में गुरु की कृपा शिष्य की पवित्रता पर निर्भर है। शिष्य गुरु को जिस रूप में देखता है, समझता है उसी रूप में गुरु की कृपा शिष्य पर होती है। उनके कृपा से लोक परलोक दोनों शिष्य प्राप्त कर सकता है। गुरु की बहुत महिमा है। पूज्य बाबा के असंख्य भक्त हैं। गुरु पूर्णिमा के अतिरिक्त कार्तिक पूर्णिमा एवं माघ पूर्णिमा को उनके भक्तों का समागम देखने को मिलता है। सभी भक्त पूण्र निष्ठा से उनके श्री चरणों में समर्पित होते हैं। उनका दर्शन मन को अनन्त शांति एवं हृदय में प्रकाश भरता है। पूज्य बाबा का दर्शन पावन है।
ऐसे दुलभ्र संत का हम सब शिष्यो पर अनन्त काल तक कृपा बनी रहे। उनके जीवन के शतवर्ष पूरे होने के पावन समय में भक्तों की यही इच्छा है। उनका अनवरत आशीर्वाद प्रसाद प्राप्त होता रहे।